लौट गए कदम लड़खड़ाते हुए वह सिसक रही थी आँखों मे लिए एक अजीब सी शून्यता उसका दुधमुँहा बच्चा मुस्कुरा रहा था पर उसके पास था ही क्या सिवा कटोरे में पड़े चंद सिक्कों के।
हिंदी समय में अंकिता रासुरी की रचनाएँ